शायद शनिवार का दिन या दोपहर मैं ट्रैफिक की मार, या फिर नयी जगह को ढूडने मे आई दिक्कतों की वजह, आयोजन के शुभारम्भ मैं थोडा सा विलम्ब हुआ|
सर्वप्रथम आयोजक लवली गोस्वामी जी सभी आगुन्तको का अपने स्वागत किया! सर्वप्रथम अतुल जी ने टैगोर जी जिंदगी के कुछ अनछुए पहलुओं से हम सभी को अवगत करवाया| उन्होंने उस समय के काल जब भारत की आजादी का आन्दोलन जोर पकड़ रहा था, के दौरान मानवता को परिभाषित करते हुए साहित्य की रचना की| उनकी रचनायें सभी तरह के आमजन, सब उम्र के बंधुओं के लिए होती थी| उनकी रचना गीतांजलि की कई भाषाओँ मे कई अनुवादको द्वारा अनुवाद हो चूका हैं|
अतुल जी इसके बाद टैगोर जी कविता अंतिम श्रिंगार का पठान किया| उन्होंने एक और कविता जिसका की शीर्षक ‘विदा’ भी हमारे समक्ष प्रस्तुत की| इसमें एक ऐसे व्यकित के छुट्टी मिल जाने पर होने वाली ख़ुशी का चित्रण किया गया हैं|
सुरभि जी एक बहुत ही सोचने लायक कविता पेश करके हम सभी को सोचने के लिए मजबूर कर दिया| हमेशा की तरह इस कविता मैं भी एक सवाल पुच्छा जा रहा हैं| हमारा समाज पहले की तुलना मैं काफी प्रगति शील हो गया हैं, ओर अब अनेको परिवार महिलाओं की शिक्षा दीक्षा पर धयान देते हैं और उन्हें समाज मैं आगे बड़ते देखना चाहते हैं| पर कही ना कही, उन्हें यह भी बताया जाता है, की वह पुरुषो से अलग हैं| उन्हें प्रतिउतर देने की बजाय सहने की हिदायत दी जाती हैं| तो सुरभि जी कविता मैं एक बेटी अपनी माँ से यही सवाल पुच रही हैं, की जब नीचता समाज के अंदर विद्यमान हें, तो मुझे छुपना क्यूँ सिखाया? यही नहीं, ऐसे अनेको सवाल इस कविता मैं किये गए हैं|
नीरज जी “स्वत्बंदी” कविता का पाठ करते हुए, इसे आज की हमारी जिंदगी से जोड़ दिया| इस कविता मैं दर्शया गया हैं की कैसे मनुष्य अपने ही विचारों मैं खोया हुआ हैं, और अपने आप को सर्व्शाकित्मन इंसान समझाने लगा हैं| काफी कुछ हमारी कॉर्पोरेट दुनिया की जिंदगी से मेल खाती हैं|
सौरभ जी ने अपनी कविता मैं देश के कर्ताधर्ताओं पर एक तरह से व्यंग्य कसने की कोशिश की| सतलुज के किनारे से आती आवाजो के माध्यम से उन्होंने उन जानो की व्यथा कहने की कोशिश की, जिनकी आवाज शायद सिर्फ उन्ही के आसपास सिमट कर रह जाती हैं|
इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सिद्देश्वर जी ने रबिन्द्रनाथ टैगोर ओर गीतांजलि की रचना से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों से हम सभी को परिचित करवाया|
कार्यक्रम के अंत में हिंदी साहित्य, अनुवादको का साहित्य यात्रा में योगदान एवं इन्टरनेट के आने साहित्य जगत को हुए फायदे एवं नुक्सान पर परिचर्चा हुई|
और जानकारी के लिए:
– आयोजन का फेसबुक पेज
– गुरु रविंद्रनाथ टैगोर के बारें मैं और पड़े
(मेरी स्मरण शक्ति के आधार पर लिखा गया है| कुछ गलती हो गयी हो, या कुच्छ छूट गया हो तो आप कमेंट बॉक्स मैं लिख दीजियें)